"मैंने अपनी आँखों से देखा है कि उस गाड़ी में वह बच्चा नहीं था जिसने ख़ुदकुशी के लिए ऑनरेबल प्राइम मिनिस्टर से परमिशन मांगी है |
मेरा ख्याल है कि वह बच्चा वह अब बोर्डिंग में भी नहीं है | महज चकमा देने के लिए पुलिस को कैंपस में रोका गया है जबकि बच्चे को वहां से हटा दिया गया होगा |
अगर उसने वाकई ख़ुदकुशी कर ली हो तो हमें चाहिए कि बच्चे के पेरेंट्स पर नज़र रखें |
वह मर गया है तो उसे दफ़नाने के लिए वे कब्रिस्तान जायेंगे और पुलिस ने दूसरी जगह शिफ्ट का दिया है तो वह मिलने जायेंगे |"

बाल उत्त्पीड़न की अंतःकथाएँ कहता यह उपन्यास उस बच्चे के बारे में आपको नए सिरे से सोचने के लिए बाध्य करता है , जिसके आप माता-पिता हैं अथवा अभिभावक ....

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"यह हिन्दी में एक ऑफबीट नाॅवल है, क्योंकि लेखक ने कथ्य , भाषा और शैली के स्तर पर अनेक अतिक्रमण किये हैं।"

18दिसम्बर 2012

 




डॉ. सैनी ने इस उपन्यास में हिंदी की हदबंदी को तोड़ते हुए भाषा को नये तेवर प्रदान किये हैं और संत दर्शन की प्रासंगिकता को भी रेखांकित किया है।
- 22अक्टुबर 2012" Read More




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"मैंने अपनी आँखों से देखा है कि उस गाड़ी में वह बच्चा नहीं था जिसने ख़ुदकुशी के लिए ऑनरेबल प्राइम मिनिस्टर से परमिशन मांगी है |
मेरा ख्याल है कि वह बच्चा वह अब बोर्डिंग में भी नहीं है | महज चकमा देने के लिए पुलिस को कैंपस में रोका गया है जबकि बच्चे को वहां से हटा दिया गया होगा |
अगर उसने वाकई ख़ुदकुशी कर ली हो तो हमें चाहिए कि बच्चे के पेरेंट्स पर नज़र रखें |
वह मर गया है तो उसे दफ़नाने के लिए वे कब्रिस्तान जायेंगे और पुलिस ने दूसरी जगह शिफ्ट का दिया है तो वह मिलने जायेंगे |"

बाल उत्त्पीड़न की अंतःकथाएँ कहता यह उपन्यास उस बच्चे के बारे में आपको नए सिरे से सोचने के लिए बाध्य करता है , जिसके आप माता-पिता हैं अथवा अभिभावक ....

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"यह हिन्दी में एक ऑफबीट नाॅवल है, क्योंकि लेखक ने कथ्य , भाषा और शैली के स्तर पर अनेक अतिक्रमण किये हैं।"

18दिसम्बर 2012

  स्वर सरिता



डॉ. सैनी ने इस उपन्यास में हिंदी की हदबंदी को तोड़ते हुए भाषा को नये तेवर प्रदान किये हैं और संत दर्शन की प्रासंगिकता को भी रेखांकित किया है।
- 22अक्टुबर 2012" Read More




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