प्रिय ओलिव ,
राजस्थान साहित्य अकादमी के सर्वोच्या साहित्यिक पुरस्कार (मीरा अवार्ड ) प्राप्त उपन्यास जो पाठक को पशुओं के प्रति संवेदनशील बनता है।

लेखक ने प्रिय ओलिव (श्वान सेवा की दुर्लभ कथा ) में मनुष्य के पशु प्रेम की मार्मिक एवं प्रेरणादायक कथा कही है। रिश्ता कायम करती हैं।


आज मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डा. आर.डी. सैनी की कृति 'किताब' का विमोचन मुख्यमंत्री आवास पर किया।
इस अवसर पर आरटीडीसी के पूर्व अध्यक्ष राजीव अरोड़ा,राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक डॉ बी. एल. सैनी,मुख्यमंत्री के ओएसडी फ़ारूक़ आफ़रीदी,
शिक्षाविद डॉ मथुरेश्वर पारीक,प्रमिला दुबे और प्रतिभा पाराशर मौजूद थे ।

 डॉ पारीक ने सी. एम को बताया कि यह 'किताब' सरकार की 'नो बैग डे' अवधारणा को साकार करते हुए सृजनात्मक शिक्षा पर फोकस करती है।
सी. एम ने डा. आर. डी सैनी को इसके लिए बधाई दी।










अपनी कविता के लिए सैनी एक खास दुनिया रचते हैं - राजा, रानी, राजकुमार, राजकुमारी और आम लोगों की दुनिया। इनके साथ जंगल, दरख्त, नदी और परिंदे भी हैं, जो जरुरत के मुताबिक कविता में जगह बनाते हैं।

कथा से कविता और कविता से कथा में इनका आना जाना बना रहता है... कथा-कविता के ताने-बाने में बुनी इन कविताओं में संकेत, बिम्ब, और प्रतीक झिलमिलाते हैं। इस सबसे फूटती है सैनी की कविता, जो समापन से पूर्व पाठक को सवालों के घेरे में स्तब्ध छोड़ देती है।

व्यंग्य और अर्थ-ध्वनि से सम्पन्न इस संग्रह की कविताएँ कृत्रिमता व दुरुहता से बचती हुई पाठक से सहज करीबी रिश्ता कायम करती हैं।





बहुत कम लोग जानते होंगे कि प्रसिद्ध उद्योगपति घनश्यामदास बिड़ला ने आजादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों और राष्ट्रीय कांग्रेस के मध्य एक सेतु का काम किया था।

उनकी इस भूमिका के कारण ही वे दूसरी गोल मेज कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए लंदन गये थे जिसमें महात्मा गांधी, मदनमोहन मालवीय, मोहम्मद इकबाल, सरोजनी नायडू और अली इमाम जैसे देशभक्तों ने भाग लिया था। घनश्यामदास बिड़ला इस कांफ्रेंस में व्यवसायी वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में आमंत्रित थे। इस प्रकार यह मोनोग्राफ घनश्यामदास बिड़ला के आजादी की लड़ाई में योगदान को उजागर करता है।












अशोक गहलोत जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने राजस्थान में सूचना का अधिकार कानून लागू किया था जो लोकतंत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने वाला कदम था। इसके लिए सूचना का अधिकार अधिनियम 2000 पारित हुआ था।

यह हैरानी की बात है कि केन्द्र सरकार ने बाद में (2005) सूचना का अधिकार कानून बनाया था। यह पुस्तक गहलोत सरकार की प्रशासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और जनसहभागिता की मुहिम से रूबरू करवाती है।



आर.डी. सैनी की इस पहली कृति में 45 कविताएँ संकलित थी। यह संकलन सन 1986 में आर.इमरोज के नाम से प्रकाशित हुआ था।
इन कविताओं को 'कथा-कविता' कहा गया था। कथा में कविता और कविता में कथा कहने की एक विशिष्ट शैली इन कविताओं में विकसित हुई थी।

शुरुआत

कई दिनों से देख रहा था
कूड़े का बड़ा - सा ढेर और उससे जूझती एक चिड़िया
'क्या ढूंढती हो?' मैंने पूछा।
'दाना।'
'मिला?'
'नहीं।'
'कहीं अन्यत्र क्यों नहीं जाती?'
'मेरी मां और मां की मां भी यहीं ढूंढ़ा करती थी, उन्हें नहीं मिला तो क्या, मैं ढूंढ़ लूंगी।'
और एक दिन मैंने देखा
वह चिड़िया मां बनकर खप गयी
और उसकी जगह उसकी बेटी ने ले ली थी।














चुनाव से ठीक पहले हर पार्टी अपना घोषणा पत्र जारी करके जनता से कुछ वायदे करती है और चुनाव लड़ती है।
मजेदार बात यह है कि चुनाव के बाद सरकारें अपनी पार्टी के घोषणा पत्र को भूला देती हैं जो जनता के साथ दगा है।
लेकिन जब अशोक गहलोत राजस्थान में पहली बार मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अपनी केबिनेट की पहली बैठक में ही प्रस्ताव पारित किया था कि वे अपने घोषणा पत्र में किये गये वायदों को पूरा करेंगे।
सरकार के कार्यकाल के आखिर में परीक्षण करने पर पाया गया कि उस घोषणा पत्र के 98% वायदे पूरे किये जा चुके थे।
यह पुस्तक इसका लेखा-जोखा पेश करती है।