Kitab

(9 customer reviews)

Ramji looked at his sixth-grade books and realized he had failed unnecessarily. Especially the social science book was very interesting. The science book amazed him. English and math books were still confusing, but he was confident he would understand them too.

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Meet The Author

"Writing sets me free. Overwhelmed by the joy of creation, I find myself in an entirely new world. The dark shadows have been left behind."

Ramji looked at his sixth-grade books and realized he had failed unnecessarily. Especially the social science book was very interesting. The science book amazed him. English and math books were still confusing, but he was confident he would understand them too.

In short, instead of running away, Ramji prepared himself for further studies. He was definitely sorry for failing, but he was no longer frustrated or disappointed.

Overflowing with self-confidence, Ramji decided to face the difficulties and find solutions.

It was the magic of a book he had read on the train.

9 reviews for Kitab

  1. Someshwar Deora

    अत्यंत सरल और प्रभावी शैली में लिखी किताब है। लेखक के शब्दों में कहे तो ‘इंटरनेट से ज्यादा जादुई है, गूगल से कहीं अधिक करिश्माई है, (यह) किताब’

  2. Dr Reeta Arora (Educationist)

    Excellent book.written in a lucid manner,higlights pedagogy, psychology,techers attitudes,sociol prejudices n commitment of teachers.

  3. डॉ दिनेश गुप्ता, प्रोफेसर

    प्रोफेसर आरडी सैनी द्वारा बीज ग्रंथ माला -1 के अंतर्गत लिखी “कुछ यूं रचती है हमें किताब” पहली नज़र में अन्य कथा पुस्तकों जैसी काल्पनिक रचना लगी लेकिन अंतिम अध्याय ‘पचास साल बाद’ पढ़ने के बाद मेरी यह धारणा बदल गई. इस अध्याय में लेखक ने इस बात को और प्रतापादित किया है कि किस तरह घर में बीते बचपन की छाप बच्चे के मन, मस्तिष्क, पर ता जिंदगी बनी रहती है, शिक्षकों की हिंसा बच्चों में डर भले ही उत्पन्न करें लेकिन उनमें शिक्षक के प्रति सम्मान भाव उत्पन्न नहीं कर सकती . यह हमारी शिक्षा पद्धति का नकारात्मक पहलू है और इसकी वजह से हमारी शिक्षा बच्चों को आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर पाती है. इस किताब में प्रोफ़ेसर सैनी ने शिक्षक के व्यवहार स्वभाव और शिक्षण पद्धति बेहतर होने पर बच्चों में उस विषय से लगाव बढ़ने की सम्भावनाओं को इंगित किया है. यह बात सही भी है. वर्तमान में पढ़ाई का मूल्यांकन अधिकांशत: स्मरण शक्ति पर आधारित है जबकि नया शिक्षण शास्त्र वैज्ञानिक आधार तथा दैनिक जीवन में हो रही प्रक्रिया के सीखने सिखाने का पर आधारित हो, ऐसा माना जा रहा है. नई शिक्षा नीति बच्चों के आगे बढ़ने में मददगार और उनके सर्वांगीण विकास के लिए हो तो निश्चय ही समाज का निर्माण होगा. लेखक की जिंदगी को किस तरह घर से दूर ट्रेन में सफर करते हुए एक पुस्तक “टार्जन की वापसी” ने अपने घर वापस लाकर ऊर्जावान कर दिया इस बात का बहुत सुंदर चित्र सहित वर्णन किया गया हैl यह किताब निश्चय ही स्कूली बच्चों के लिए बहुत उपयोगी होगी, और लौ की भांति प्रज्वलित होकर बच्चों में जीवन ज्योति बनाएगी ऐसा मेरा विश्वास है. मुझे प्रोफेसर सैनी के अन्य उपन्यास “बच्चे की हथेली पर तथा संस्मरण “प्रिय ऑलिव” तथा इसका अंग्रेज़ी अनुवाद “माय डियर ऑलिव” पढ़ने का मौका भी मिला. निश्चय ही इस तरह की पुस्तकों के पढ़ने से बच्चों में शिक्षा हासिल करने में जिज्ञासा पैदा होगी तथा एक साधारण गरीब परिवार के बच्चे रामजी में किस प्रकार ललक पैदा हुई तथा राजस्थान लोक सेवा आयोग अजमेर के अध्यक्ष तक पहुंचा यह पूरा वृत्तांत बच्चों को प्रोत्साहित करेगाl . इस पुस्तक के सुरुचिपूर्ण प्रकाशन के लिए हिंदी ग्रंथ अकादमी को साधुवाद. मेरा तो अनुरोध है कि अकादमी इस पुस्तक का अधिकाधिक प्रचार करे और अगर सम्भव हो तो बच्चों को इसे निशुल्क अथवा न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध कराया जाए..

  4. डॉ. राजाराम भादू

    डा. आर. डी. सैनी की यह कृति एक विद्यार्थी द्वारा खुद की खोज, क्षमता- वर्धनऔर सीखने की स्वतंत्र प्रक्रियाओं पर प्रकाश डालती है और बताती है कि इससे एक बच्चे के व्यक्तित्व का निर्माण कैसे होता है?इसके साथ- साथ यह मौजूदा शिक्षा की बदहाली पर सवाल खडे करके एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता की ओर संकेत करती है जो पिछड़े, गरीब, वंचित व अभाव- ग्रस्त वर्गों के निरीह बच्चों की आशाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप हो।इस तरह यह शैक्षिक विमर्श की एक खुली खिडकी है।

    इस किताब को पढते हुए एक तरफ तो मैं अपने बचपन और शिक्षण की स्मृतियों में आता- जाता रहा तो दूसरी तरफ विद्यार्थियों, विद्यालयों, शिक्षा- पद्धतियों और शिक्षकों के हालात को एक बच्चे की नज़र से देखता व परखता चला गया।

    इस कृति की यह बड़ी विशेषता है कि यह आपको शिक्षा- तंत्र पर सोचने के लिए उद्वेलित करती है।

    इस कृति में किताब को लेकर जो सकारात्मक सूत्र मिलते हैं , वह लेखक के उस मौलिक अनुभव, चिन्तन, अध्ययन और लेखन से निसृत हैं जिसमें किताब उसकी तारनहार है और उसकी अटूट आस्था है कि किताब की दोस्ती कभी भी दगा नहीं देती। हम देखते हैं कि किस तरह रामजी में एक किताब ने आत्मविश्वास और साहस का संचार किया। उसको अपनी तरह पढने वाले दोस्त मिले और उनमें संवाद शुरू हुआ। यह भी एक तथ्य है कि संवाद की सीखने में अहम भूमिका होती है। संवाद वस्तुत: प्रश्न और अनुभवों का आदान- प्रदान है। बच्चों में यह प्रक्रिया सीखने को आगे बढाती है।

    इस तरह यह एक ऐसे बच्चे की सक्सेस स्टोरी है जो एक किताब की रोशनी से रास्ता बनाकर अपने जुनून और संघर्ष से खास मुकाम तक पहुंचता है और जहां से मुखातिब होकर वह हमें एक शैक्षिक विमर्श में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए आमंत्रित करता है।
    किताब हाल ही राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी से प्रकाशित हुई है।

  5. डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल

    ‘आर. डी. सैनी ने अपनी इस कृति में एकबिल्कुल नए विषय को उठाया है
    (यह काम वे अपनी हर कृति में करते हैं!) औरउस विषय के निर्वहन का उनका ढब भी अनूठा है.

    राजाराम भादू की सुविचारित प्रारम्भिक टीप ने इस किताब की उपादेयता को और ज़्यादा बढ़ा दिया है|
    एक सुख यह भी है कि लेखक, भूमिका लेखक और प्रकाशक तीनों को हार्दिक बधाई. मुझे पूरा विश्वास है
    कि जिनकी शिक्षा में तनिक भी रुचि है वे इस किताब को ज़रूर पढ़ेंगे|

  6. रामानंद राठी

    जिंदगी के असल करघे पर बुनी गई
    एक सचाई … एक अनोखी ‘किताब’|

  7. जयंतीलाल खंडेलवाल

    यह ‘किताब’, अध्यापन करने वालों को एक दिशा देती है कि वे विद्यार्थियों के साथ हमदर्दी से पेश आयें |
    भय या तिरस्कार का व्यवहार बच्चों को विचलित कर जिन्दगी तक बर्बाद कर देता है और सहानुभूति का व्यवहार जिन्दगी संवार देता है।

    ‘किताब’ पढने के बाद मै इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इसे स्कूली पाठ्यक्रम या B.Ed के पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से लागू कर दिया जाए तो इससे प्रदेश के लाखो विद्यार्थियों का भला होगा, खास कर उनका जो किसी प्रताड़ना या उपेक्षा का शिकार हो जाते हैं। शिक्षक गण ‘किताब’
    से अवश्य ही कुछ प्रेरणा लेंगे।

  8. कुमार रेन

    जब मैंने पहली बार ‘किताब’ की स्क्रिप्ट पढ़ी तो मुझे लगा कि एक सृजनात्मक ऊर्जा की मुझमें लहरें उठ रहीं हैं। और बस मैं रेखांकन करता गया। मेरे जहन में बस 12-13 साल का रामजी नाम का एक विद्यार्थी था जो अपने परिवेश, परिवार,स्कूल और टीचर्स से उकताया हुआ था।

    इस किताब के कुछ रेखांकन फेसबुक द्वारा आप तक पंहुचा रहा हूँ l यह ‘किताब’ राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा पब्लिश की गई है l

    ‘किताब’ में मुझे रेखांकन करने का
    अवसर मिला, यह मेरा सौभाग्य है |

  9. नितिन यादव

    जो बच्चे फेल हो जाते हैं , वे तथाकथित आदम के सांचे नहीं बन पाते. इन तथाकथित बेडौल सांचो को कोई नहीं अपनाना चाहता , यहां तक कि उनका परिवार भी नहीं . इसकी परिणति होती है बच्चे के नितांत अकेले होते जाने में . ऐसे ही एक अकेले होते जाते बच्चे ‘रामजी भाई’ की कहानी बताती है आर.डी सैनी की नई पुस्तक ‘किताब’|

    जर्जर और सीलन भरी शिक्षा पद्धति के साथ तारतम्य न बिठा पाने पर अकेलेपन के कुहासे में भटकने को अभिशप्त बच्चे के लिए एक किताब जादुई और तिलिस्मी दुनिया खोल सकती है . वह दुनिया जहां अन्याय और भेदभाव नहीं है , जहां बातचीत के लिए अनेक संगी साथी हैं . बच्चे के हिल चुके आत्मविश्वास को फिर से पटरी पर लाने में भी यह किताब मदद करती है . सभी बच्चे ‘रामजी’ की तरह भाग्यशाली नहीं होते. उन्हें वह किताब कभी नहीं मिलती जो उनका जीवन बदल सके . उनके जीवन में टार्जन की वापसी ( रामजी भाई को मिली किताब ) नहीं होती , टॉर्चर का स्थाई भाव बना रहता है.मोहन राकेश अपनी डायरी में लिखते हैं शिक्षा का उद्देश्य है यह सिखाना “हाउ टु थिंक” लेकिन स्वतंत्र सोचने के लिए जिस कल्पना शक्ति की आवश्यकता होती है ,उसका दम हमारी पारंपरिक शिक्षा प्रणाली बहुत पहले घोट देती है |

    राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी की बीजग्रंथ माला की यह पहली किताब है . अकादमी की इस पहल का स्वागत होना चाहिए .

    यह किताब शिक्षा के व्यापक संदर्भ और फलक पर रोशनी डालती है साथ ही शिक्षा से दूर करने वाले समाजशास्त्रीय , आर्थिक , मनोवैज्ञानिक कारणों को भी सूक्ष्मता से अंकित करती है . लेखक ने जीवन के एक दृष्टांत के माध्यम से एक सक्सेस स्टोरी पाठक के सामने रखी है जो शिक्षा के स्टेक होल्डर के सामने आती है |

    इस किताब की एक उपलब्धि यह भी है कि लेखक अपनी तरफ से कोई भी चीज थोपने का प्रयास नहीं करता . सब कुछ कथा के अंतःसूत्रों के माध्यम से स्वाभाविक और सहज रूप से सामने आता है । भाषा कमाल की सादगी और सुबोधता लिए हुए है । सोने पर सुहागा यह है की प्रसिद्ध शिक्षाविद और आलोचक राजाराम भादू का बीज वक्तव्य इसमें शामिल है , जो शिक्षा से जुड़े सभी आयामों पर एक नए सिरे से विमर्श की मांग करता है ।

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