Priya Olive

(4 customer reviews)

Pets are not merely meant for amusement.Neither are they toys nor they are status symbols. To treat them like a showpiece is a reprehensible.

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Meet The Author

"Writing sets me free. Overwhelmed by the joy of creation, I find myself in an entirely new world. The dark shadows have been left behind."

Pets are not merely meant for amusement.Neither are they toys nor they are status symbols. To treat them like a showpiece is a reprehensible.

They are living beings in flash and blood.

Their love is selfless.The best quality in them is that they do not search for your alternative.With these things in mind , all the pet keepers should attend to their pets to their wholeheartedly, especially when they are ailing, injured or have become infirm due to age.

4 reviews for Priya Olive

  1. डॉ अरविन्द माथुर (veterinary doctor)

    “ओलिव को मेरे पास इलाज के लिए लाया गया तो उसका जिस्म लकड़ी की तरह अकड़ा हुआ था। वह आखिरी सांसें गिन रहा था..

    पहला सवाल था कि क्या वह सुबह तक जिंदा रह पायेगा? परन्तु 45 दिन बाद! वह अपने पांव से चलकर मेरे यहां आने-जाने लगा। मेरा इलाज अपनी जगह था किन्तु उससे भी आगे थी- सैनी फेमिली की केयर… जिससे ओलिव को नई जिंदगी मिली थी।”

  2. डॉ. राजाराम भादू

    “यह एक अनूठी सत्यकथा है जो मनुष्य और प्राणी के रिश्ते की अदृश्य परतों और अछूते आयामों को स्वाभाविक रूप से उदघाटित करती है। दुनिया के आभिजात्य वर्ग की तरह भारतीय समाज में भी पालतू कुत्ते स्टेटस सिंबल या मन- बहलाब के साधन की तरह देखे जाते हैं। अक्सर इन्हे पालने वाले के नजरिये से समझा जाता है। खुद इन प्राणियों का अपने पालकों के प्रति क्या रवैया या रागात्मक संबंध होता है, उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता। जीव- दया के स्वघोषित उपक्रम गली के कुत्तों को लेकर फिक्रमंद हैं, किन्तु वे घूमन्तू समुदायों के परिवारों में ऐसे जीवों की जगह से अनभिज्ञ हैं।

    ‘ अॉलिव’ ऐसा वृत्तांत है जिसमें आप अपने पालक परिवार से उसके निस्वार्थ प्रेम और अंतरंग रागात्मक संबंध को महसूस कर सकते है। लेखक के परिवार का उसके प्रति सरोकार और संवेदना तो उसे मौत के मुंह से वापस खींच लाती है। पुस्तक की भूमिका में युधिष्ठर के स्वर्गारोहण में जिस साथी कुत्ते के प्रसंग का जो उल्लेख किया गया है, वह यहां अपना औचित्य पा लेता है।

    हिन्दी साहित्य में पालतू प्राणियों को पर्याप्त जगह नहीं मिली है, जंगलियों की तो फिर बात ही क्या करें। इस संदर्भ में महादेवीजी के रेखाचित्र, प्रेमचंद की ‘ पूस की रात’ और अश्कजी की ‘ डाची’ जैसी चंद रचनाएं याद आती हैं। ‘ ट्रेवल विद चार्ली’ जैसी क्लासिक रचनाओं की तो यहां कल्पना ही की जा सकती है। ऐसे समय में जब हम नैसर्गिक जीवन की लुप्त होती समृद्धि और वैविध्य के क्षरण को लेकर चिंतित हैं, ‘अॉलिव’ एक ताजे झौंके की तरह है।”

  3. Dainik Navjyoti

    लेखक ने प्रिय ओलिव (श्वान सेवा की दुर्लभ कथा ) में मनुष्य के पशु प्रेम की मार्मिक एवं प्रेरणादायक कथा कही है।

    “जीवों से प्रेम का दस्तावेज

    डॉ. सैनी ने अपनी कृति ‘प्रिय ओलिव : ‘श्वान-सेवा एक दुर्लभ कथा ‘ की अत्यंत मार्मिक शब्दों में संरचना एक संस्मरण के रुप में बहुत ही सुंदर तरीके से की है…”

  4. प्रो. चन्द्रभानु भारद्वाज

    “समस्त प्राणी प्रेम का उत्कर्ष ‘प्रिय ओलिव'”

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